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Heart Disease (हृदय रोग)

हृदय रोग आज के युग में मृत्यु का सबसे सामान्य कारण बनता जा रहा है। ब्लड प्रेशर बढ़ना, छाती का दर्द आदि भी हृदय रोग से जुड़े लक्षण हैं। हृदय रोग की बीमारियों के कई कारण हैं, जिनमें सबसे अधिक हमारे शरीर के तंत्रिका तंत्र का प्रभाव शामिल है, जो हमारी मानसिक और भावनात्मक प्रक्रिया को संचालित करता है। जब भी तंत्रिका तथा पाचन तंत्र पर आवश्यकता से अधिक बोझ पड़ता है, तो उसका सीधा प्रभाव हृदय और ब्लड प्रेशर पर पड़ने लगता है। प्राकृतिक जीवन पद्धति से दूर जाने पर ही इन दोनों तंत्रों पर बोझ पड़ने लगता है। 
हमारे हृदय की प्रत्येक धड़कन शरीर में रक्त संचरण का कार्य करती है। कभी न थकने वाला हमारे हृदय का यह पंप बड़े से बड़े वैज्ञानिकों द्वारा बनाई गई किसी भी मशीन से अधिक विश्वसनीय है। परन्तु मनुष्य अपने गलत कार्यों से इस विश्वसनीय मशीन को भी खराब कर बैठता है। हमारा मानसिक और भावनात्मक स्तर भी हृदय को प्रभावित करता है। अधिक तनाव और समस्याओं से घिरा असंतुष्ट मन, बात-बात पर गुस्सा करने की प्रवृत्ति आदि के कारण हमारे शरीर से कुछ ऐसे हार्मोन्स निकलते हैं, जो हृदय की पेशियों में तनाव उत्पन्न करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप हृदय की धड़कन बढ़ जाती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को इन आदतों से बचना चाहिए। ज्ञानेंदि्रयों पर संतुलन कायम करने से भी हृदय स्वस्थ होता है। 

भोजन के रूप में हम जब भी वसा अर्थात अधिक घी, तेल, मसालों आदि से निर्मित पदार्थों और प्रोटीन जैसे अंडे, मांस आदि का अधिक उपभोग करते हैं, तो इनसे हमारे शरीर के रक्त में कोलेस्ट्राल की मात्रा बढ़ जाती है। कोलेस्ट्राल बढ़ने से रक्त में भारीपन आ जाता है और रक्त का यह भारीपन शीघ्र ही हृदय रोगों में परिवर्तित हो जाता है। 

ऐसे पदार्थ हमारी पाचन क्रिया पर भी बोझ बढ़ा देते हैं। इसलिए रोग लगने से पहले ही हमें अपने भोजन में वसा और प्रोटीन आदि को संतुलित रूप में शामिल करना चाहिए। भोजन में ताजे फल, सब्जियां, पूर्ण अनाज आदि ही अधिकाधिक होने चाहिए। दिन में दो-तीन बार साधारण गर्म जल का सेवन भी शरीर में पहले से जमे हुए वसा, प्रोटीन आदि के निष्कासन का कार्य करेगा। चाय भी पाचन क्रिया के लिए हानिकारक है। अक्सर लोग हृदय रोग तथा उससे संबंधित लक्षणों को देखते ही भारी रसायनों से बनी दवाइयों की शरण लेते हैं। जबकि हृदय रोगों का इलाज योगिक और प्राकृतिक जीवन पद्धति से ही मिल सकता है। इस जीवन पद्धति में कहीं भी तनाव के स्थान पर, सर्वत्र शान्ति और संतुलन का भाव रहता है। हृदय रोग होने पर यदि व्यक्ति प्रतिदिन नियमित कुछ हल्के-हल्के आसन जैसे शशांक आसन, भुजंगासन तथा प्राणायाम आदि भी करता रहे, तो उसे आराम मिलता है। प्राणायाम हमारे मानसिक और भावनात्मक पक्ष को तो संतुलित करने के साथ ही पाचन क्रिया में भी सहायक होते हैं। सरल जीवन, सरल खान-पान ही हृदय रूपी पंप को सुचारू रूप से चलाने में सहायक सिद्ध होंगे। तेज गति का जीवन और तड़क-भड़क का खान-पान तो हृदय रोगों को आमंत्रण ही देगा।

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