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Fight Cold With (भस्त्रिका प्राणायाम)

सर्दी के मौसम में कफ अधिक बनना एक सामान्य ऋतु लक्षण है। परंतु उस कफ का न सूखना या उसका शरीर से निष्कासन न होना बीमारियों का कारण बन जाता है। यदि कफ नाक के क्षेत्र में लगातार जमा होता रहे, तो नाक के माध्यम से जिस श्वसन तंत्र का संचालन होता है, उस श्वसन तंत्र में रुकावट आनी स्वाभाविक हो जाएगी। हमारे शरीर में कफ का जमाव न हो, इसके लिए खान-पान पर विशेष ध्यान रखना चाहिए। चाय-कॉफी आदि के स्थान पर सामान्य गर्म पानी का अधिकाधिक प्रयोग करना चाहिए। गरम प्रभाव वाली वस्तुओं को अपने भोजन आदि में अधिकाधिक शामिल करना चाहिए जैसे - अदरक (सूखने पर जिसे सोंठ कहते हैं), हल्दी, लहसुन, अजवाइन, तुलसी, काली मिर्च, दालचीनी, जायफल, सौंफ, बड़ी इलायची, मुलेठी, आज्ञाघास, अश्वगंधा, मेथी दाना, अर्जुन पेड़ की छाल, गिलोय और सूखा धनिया आदि। इन सब वस्तुओं को थोड़ी मात्रा में मिलाकर पीस लें और इस मिश्रण की थोड़ी मात्रा प्रतिदिन पानी में खूब अच्छी प्रकार से उबालकर उसमें स्वादानुसार सेंधा नमक, गुड़ या देशी खांड़ या शहद आदि मिलाकर चाहें, तो उसमें थोड़ा-सा दूध मिलाकर उसे चाय समझकर पियें या और अधिक प्रभाव के लिए दूध के स्थान पर उसमें नींबू निचोड़कर उसे काढ़े की तरह पियें। इस प्रकार यह हर्बल-टी अर्थात जड़ी-बूटियों वाली चाय कफ की निवृत्ति के साथ-साथ आपके रक्त संचार और हृदय संचालन को भी दुरुस्त रखेगी। 

कफ का जमाव रोकने के लिए यौगिक प्रक्रियाओं में भस्त्रिका प्राणायाम सबसे अधिक लाभकारी सिद्ध हो सकता है। भस्त्रिका प्राणायाम के लिए पद्मासन में बैठकर रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए एक समान गति से बार-बार श्वास लेने और छोड़ने का अभ्यास प्रारंभ करें। इस दौरान यह ध्यान रखें कि श्वास लेने और छोड़ने में बराबर समय लगे। यानी श्वास और प्रश्वास की गति समान हो और दोनों में समान ताकत का प्रयोग हो। इस प्राणायाम के अभ्यास में यह ध्यान रखें कि जब आप नाक से श्वास लेने और छोड़ने का कार्य कर रहें हों तो केवल चार हिस्सों - नाक, गला, छाती और पेट पर ही ध्यान एकाग्र करें। प्राणायाम में केवल यही चार हिस्से हिलने चाहिए। शरीर के अन्य हिस्सों को पूरी तरह से स्थिर रखें। खास तौर पर बाजू, कंधे और पैर इत्यादि को बिल्कुल न हिलाएं। आधा मिनट या एक मिनट तक लगातार यह अभ्यास बड़ी सरलता से किया जा सकता है। इस प्रकार लगातार कुछ समय प्रयास करने से एक दौर पूरा हुआ समझना चाहिए। 

एक दौर की समाप्ति पर एक बार सूर्य भेदी प्राणायाम अवश्य करना चाहिए। इसमें दायीं नासिका से श्वास लेकर कुछ देर रोकने के बाद बायीं नासिका से उसे निकाल दें। एक बार भस्त्रिका करने के बाद यदि आप आंखें बंद करके शांत बैठ जाएं, तो आप ध्यान लगाकर यह सीधा महसूस कर सकते हैं कि अगले एक मिनट में आपको शायद दो या तीन बार ही श्वास लेने की आवश्यकता पड़ेगी। सामान्यत: व्यक्ति 14 से 16 बार प्रति मिनट श्वास लेता है। इस प्राणायाम में व्यक्ति जितना कम श्वास लेगा उतनी ही उसकी आयु में वृद्धि होती है। तेज और समान गति से बार-बार श्वास लेने और छोड़ने से नाक के पीछे और साइनस क्षेत्र को सबसे अधिक प्रभावित करके कफ को बाहर निकालने में भी यह लाभकारी होगा। इस प्राणायाम से दिमाग की परतें लगातार सिकुड़ने और फैलने से तंत्रिका तंत्र पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। इससे व्यक्ति चेतनता में भी वृद्धि होती है। भस्त्रिका प्राणायाम से फेफड़ों के नीचे डायफ्रॉम के लगातार हिलने-डुलने से हृदय भी संतुलित गति से कार्य करता है तथा उसकी कार्यक्षमता बढ़ जाती है। भस्त्रिका से शरीर को आक्सीजन की आपूर्ति अधिक मिलती है। शरीर के अंदर कई प्रकार के विषैले तत्व जो कार्बन डाईऑक्साइड के रूप में हानिकारक गैस उत्पन्न करते रहते हैं, उस गैस का निष्कासन भी अधिक से अधिक मात्रा में होने लगता है, जिससे रक्त भी शुद्ध होता है।

भस्त्रिका प्राणायाम विस्तार से: भस्त्रिका प्राणायाम में सांस लेने व छोड़ने की गति अधिक तेजी से करनी होती है। संस्कृत में भस्त्रिक का अर्थ धमनी होता है। योग में इसका नाम भस्त्रिका इसलिए रखा गया है, क्योंकि इसमें व्यक्ति की सांस लेने व छोड़ने की गति लौहार की धमनी की तरह होती है। इस प्राणायाम से प्राण व मन स्थिर होता है और कुण्डलिनी जागरण में सहायक होता है। इस प्राणायाम के अभ्यास से योगियों ने अपने विचलित वीर्य को पुन: वाष्प में परिवर्तित कर दिया करते थे। 

पहली विधि- इसके अभ्यास के लिए नीचे पद्मासन या सुखासन की स्थिति में बैठ जाएं। इसके बाद अपने बाएं हाथ को नाभि के पास हथेली को ऊपर की ओर करके रखें। अब दाएं हाथ के अंगूठे को नाक के दाएं छिद्र के पास लगाएं और मध्यम व तर्जनी को बाएं छिद्र के पास लगाकर रखें। इसके बाद नाक के दाईं छिद्र को बंद कर बाएं छिद्र से आवाज के साथ तेज गति से सांस बाहर निकालें और फिर तेजी से लें। इस क्रिया में पेट को फुलाएं और पिचकाएं। फिर बाएं छिद्र को बंद करके दाएं से आवाज के साथ सांस बाहर निकालें और फिर तेजी से सांस अंदर लें। फिर दाएं छिद्र को बंद करके बाएं से सांस को आवाज के साथ बाहर निकालें। इस तरह 15 से 20 बार करने के बाद दोनो छिद्रों से सांस लें और फिर बाएं छिद्र को बंद कर दाएं छिद्र से धीरे-धीरे सांस छोड़ें। अब बाएं छिद्र को बंद कर दाएं छिद्र से तेज गति से सांस को अंदर लें और फिर छोड़ें। इसे 10 से 15 बार करने के बाद पहले की तरह ही सांस लें और छोड़ें। इसके बाद दाएं को बंद कर बाएं से धीरे-धीरे सांस बाहर निकालें। इसके बाद दोनो छिद्रों से तेजी से आवाज के साथ सांस लें और छोड़े। इस तरह इसे 10 से 15 बार करें। इसके बाद सांस अंदर लेकर जितनी देर तक सम्भव हो सांस को रोक कर रखें और फिर धीरे-धीरे दोनो छिद्रों से सांस को बाहर छोड़ें। इन तीनों का अभ्यास 10 से 15 बार करें और धीरे-धीरे इसका अभ्यास बढ़ाते हुए 50 बार तक करने की कोशिश करें। इस क्रिया में सांस लम्बी व गहरी तथा तेज गति से लेते हैं। ध्यान रहे कि आवाज के साथ सांस छोड़े और बिना आवाज के ही सांस लें। सांस लेने व छोड़ने के साथ-साथ ही पेट को पिचकाएं और फुलाएं। इस तरह इस क्रिया को 3 से 5 मिनट तक करें। 

दूसरी विधि- इस आसन को करने के लिए पद्मासन में बैठ जाएं और दोनो हाथों को दोनो घुटनों पर रखें। इसके बाद तेजी से नाक के दोनों छिद्रों से सांस ले और बाहर छोड़े। फिर गहरा सांस लें और जितनी देर सम्भव हो सांस को रोककर रखें और जालंधर बंध करें। कुछ समय तक उसी अवस्था में रहें। इसके बाद सांस छोड़ दें। इस तरह इस क्रिया को 3 से 5 बार करें। इस क्रिया में आंखों को बंद कर ´ओम´ का ध्यान करें और मन में अच्छे विचार रखकर ध्यान करें। 

विशेष- सांस अंदर लेते समय पेट को अंदर करके रखें। इसके अभ्यास के क्रम में मक्खन, घी तथा दूध की मात्रा अधिक खानी चाहिए। प्राणायाम के अभ्यास के समय आंखों को बंद कर लें और सांस लेने व छोड़ने के क्रम में ´ओम´ का जाप करें और मन में विचार व चिंतन करें। इस क्रिया को सर्दी के मौसम में 3 बार और तेज गर्मी के मौसम में एक बार करें। 

अभ्यास से रोगों में लाभ- यह प्राणायाम कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करता है। इससे जठराग्नि तीव्र होती है, स्नायु तंत्र मजबूत बनता है तथा यह अर्जीण, कब्ज, वायु विकार आदि रोगों को नष्ट करता है। इसका अभ्यास करने से सर्दी, जुकाम, एलर्जी, सांस रोग, दमा, पुराना नजला, साइनस आदि सभी रोग दूर होते हैं। यह हृदय और मस्तिष्क को शुद्ध कर शक्तिशाली बनाता है। यह फेफड़ें को मजबूत बनाकर फेफड़े के सभी रोग और क्षय (टी.बी.) को नष्ट करता है। इससे गले के रोग जैसे थायराइड व टान्सिल आदि खत्म होते हैं। यह त्रिदोष (वात, कफ, पित्त) के विकारों को दूर कर इसे बराबर रखता है। इससे खून साफ होता है और शरीर के विशाक्त, विजातीय द्रव्यों का निशाक्त, विजातीय द्रव्य बाहर निकलते हैं। यह स्त्री-पुरुष दोनो के लिए लाभकारी है तथा यह सभी गुप्त रोगों को दूर करता है। इससे पेट के कीड़े खत्म होते हैं तथा मधुमेह का रोग खत्म होता है। इसके अभ्यास से मंदाग्नि का रोग दूर होता है, मोटापा कम होता है तथा नासिका व छाती के सभी रोग खत्म होते हैं। यह पैन्क्रियाज ग्रंथि को सुचारू रूप से कार्यशील बनाता है। 

सावधानी- गर्मी के दिनों में प्राणायाम का समय कम कर देना चाहिए और अभ्यास के क्रम में सांस लेने में कठिनाई हो तो पहले जल नेति से नासिका ग्रंथि को साफ करें। अभ्यास के समय आंखों के आगे अंधेरा छाना, पसीना अधिक आना या चक्कर आने या घबराहट होने पर अभ्यास को रोक दें। उच्च रक्तचाप व हृदय रोगी को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए। जिसके दोनो नासिका छिद्र ठीक से न खुल रहे हो तो बारी-बारी से दोनो नासिका छिद्रों से सांस ले और छोड़े और अंत में दोनो से सांस ले और छोड़ें। इस प्राणायाम का अभ्यास 3 से 5 मिनट तक करें।

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