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अशोक हर शोक दूर करें (Ashoka Tree)

धरती पर मौजूद हर पेड़-पौधे में कोई न कोई गुण होता है। विशेषकर सजावट के काम में आने वाले पेड़-पौधों में भी कुछ ऐसे गुण होते हैं, जिनका उपयोग दवा निर्माण या किसी परेशानी से मुक्ति के लिए किया जा सकता है। अशोक के वृक्ष में ज्योतिषीय गुण भी होते हैं। तांत्रिक रूप से अशोक आवास की उत्तर दिशा में लगाना विशेष मंगलकारी माना जाता है तथा अशोक के पत्ते घर में रखने से शांति रहती है। अशोक के पेड़ को पवित्र माना जाता है। शोक-दु:ख को दूर करने के कारण ही संभवत: इसे अशोक नाम की उपमा दी गई है। भगवान राम ने खुद ही इसे शोक दूर करने वाले पेड़ की उपमा दी थी। कामदेव के पंच पुष्प बाणों में एक अशोक भी है। अशोक को बंगला में अस्पाल, मराठी में अशोक, गुजराती में आसोपालव तथा देशी पीला फूलनों, सिंहली में होगाश तथा लैटिन में जोनेशिया अशोका (Jonasia Ashoka) अथवा सराका-इंडिका (Saraca Indica ) कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जिस पेड़ के नीचे बैठने से शोक नहीं होता, उसे अशोक कहते हैं, अर्थात् जो स्त्रियों के सारे शोकों को दूर करने की शक्ति रखता है, वही अशोक है।
  • ऐसा माना जाता है कि अशोक वृक्ष घर में लगाने से या इसकी जड़ को शुभ मुहूर्त में धारण में धारण करने से मनुष्य को सभी शोकों से मुक्ति मिल जाती है। 
  • अशोक के फल एवं छाल को उबालकर पीने से स्त्रियों को कई रोगों से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही यह सौंदर्य में भी वृद्धि करता है। साथ ही इसकी छाल को उबालकर पीने से कई तरह के चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है। 
  • अगर आप किसी महत्वपूर्ण कार्य से जा रहे हैं, तो अशोक वृक्ष का एक पत्ता अपने सिर पर धारण करके जाएं, कार्य में अवश्य सफलता मिलेगी। 
  • अगर इसकी जड़ शुभ मुहूर्त में लाकर विधिपूर्वक पूजन कर धारण करें या पूजा स्थल में रखें, तो धन की कमी नहीं होती। 
  • अशोक का पेड़ लगाने और उसको सींचने से धन में वृद्धि होती है।
  • यदि अशोक वृक्ष की जड़ को तांबे के ताबीज में भरकर विधिपूर्वक धारण किया जाए, तो आपका हर असंभव कार्य पूर्ण होने की संभावना बढ़ जाएगी। 
  • इस वृक्ष को प्रतिदिन जल देने से मनुष्य की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। 
  • इस वृक्ष के बीज, पत्ते एवं छाल को पीसकर लेप लगाने से सौंदर्य वृद्धि होती है। 
  • इसके बीज या फूल को शहद के साथ मिलाकर खाया जाए, तो कई व्याधियां दूर होती है।
गुण : आयुर्वेदिक मतानुसार अशोक का रस कड़वा, कषैला, शीत प्रकृति युक्त, चेहरे की चमक बढ़ाने वाला, प्यास, जलन, कीड़े, दर्द, जहर, खून के विकार, पेट के रोग, सूजन दूर करने वाला, गर्भाशय की शिथिलता, सभी प्रकार के प्रदर, बुखार, जोड़ों के दर्द की पीड़ा नाशक होता है।

मात्रा : अशोक की छाल का चूर्ण 10 से 15 ग्राम। बीज और पुष्प का चूर्ण 3 से 6 ग्राम। छाल का काढ़ा 50 मिलीलीटर।
  • गर्भ स्थापना हेतु: अशोक के फूल दही के साथ नियमित रूप से सेवन करते रहने से स्त्री का गर्भ स्थापित होता है।
  • श्वेत प्रदर: अशोक की छाल का चूर्ण और मिश्री समान मात्रा में मिलाकर गाय के दूध के साथ 1-1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार कुछ हफ्ते तक सेवन करते रहने से श्वेत प्रदर नष्ट हो जाता है।
  • खूनी प्रदर में: अशोक की छाल, सफेद जीरा, दालचीनी और इलायची के बीज को उबालकर काढ़ा तैयार करें और छानकर दिन में 3 बार सेवन करें।
  • योनि के ढीलेपन के लिए: अशोक की छाल, बबूल की छाल, गूलर की छाल, माजूफल और फिटकरी समान भाग में पीसकर 50 ग्राम चूर्ण को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें, 100 मिलीलीटर शेष बचे तो उतार लें, इसे छानकर पिचकारी के माध्यम से रोज रात को योनि में डालें, फिर 1 घंटे के पश्चात मूत्रत्याग करें। कुछ ही दिनों के प्रयोग से योनि तंग (टाईट) हो जायेगी।
  • पेशाब करने में रुकावट: अशोक के बीज पानी में पीसकर नियमित रूप से 2 चम्मच की मात्रा में पीने से मूत्र न आने की शिकायत और पथरी के कष्ट में आराम मिलता है।
  • मुंहासे, फोड़े-फुंसी: अशोक की छाल का काढ़ा उबाल लें। गाढ़ा होने पर इसे ठंडा करके, इसमें बराबर की मात्रा में सरसों का तेल मिला लें। इसे मुंहासों, फोड़े-फुंसियों पर लगाएं। इसके नियमित प्रयोग से वे दूर हो जाएंगे।
  • मंदबुद्धि (बृद्धिहीन): अशोक की छाल और ब्राह्मी का चूर्ण बराबर की मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच सुबह-शाम एक कप दूध के साथ नियमित रूप से कुछ माह तक सेवन करें। इससे बुद्धि का विकास होता है।
  • सांस फूलना: पान में अशोक के बीजों का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में चबाने से सांस फूलने की शिकायत में आराम मिलता है।
  • खूनी बवासीर: अशोक की छाल और इसके फूलों को बराबर की मात्रा में लेकर रात्रि में एक गिलास पानी में भिगोकर रख दें। सुबह पानी छानकर पी लें। इसी प्रकार सुबह भिगोकर रखी छाल और फूलों का पानी रात्रि में पीने से शीघ्र लाभ मिलता है।अशोक की छाल का 40-50 मिलीलीटर काढ़ा पिलाने से खूनी बवासीर में खून का बहना बंद हो जाता है।
  • श्वास: अशोक के बीजों के चूर्ण की मात्रा एक चावल भर, 6-7 बार पान के बीड़े में रखकर खिलाने से श्वास रोग में लाभ होता है।
  • त्वचा सौंदर्य: अशोक की छाल के रस में सरसों को पीसकर छाया में सुखा लें, उसके बाद जब इस लेप को लगाना हो तब सरसों को इसकी छाल के रस में ही पीसकर त्वचा पर लगायें। इससे रंग निखरता है।
  • वमन (उल्टी): अशोक के फूलों को जल में पीसकर स्तनों पर लेप कर दूध पिलाने से स्तनों का दूध पीने के कारण होने वाली बच्चों की उल्टी रुक जाती है।
  • रक्तातिसार: अशोक के 3-4 ग्राम फूलों को जल में पीसकर पिलाने से रक्तातिसार में लाभ होता है।
  • मासिक-धर्म में खून का अधिक बहना: अशोक की छाल 80 ग्राम और 80 ग्राम दूध को डालकर चौगुने पानी में तब तक पकायें जब तक एक चौथाई पानी शेष न रह जाए, उसके बाद छानकर स्त्री को सुबह-शाम पिलायें। इस दूध का मासिक-धर्म के चौथे दिन से तब तक सेवन करना चाहिए, जब तक खून का बहना बंद न हो जाता हो।
  • स्वप्नदोष: स्त्रियों के स्वप्नदोष में 20 ग्राम अशोक की छाल, कूटकर 250 ग्राम पानी में पकाएं, 30 ग्राम शेष रहने पर इसमें 6 ग्राम शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
  • पथरी: अशोक के 1-2 ग्राम बीज को पानी में पीसकर नियमित रूप से 2 चम्मच की मात्रा में पिलाने से मूत्र न आने की शिकायत और पथरी के कष्ट में आराम मिलता है।
  • अस्थिभंग (हड्डी का टूटना) होने पर: अशोक की छाल का चूर्ण 6 ग्राम तक दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से तथा ऊपर से इसी का लेप करने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है और दर्द भी शांत हो जाता है।
  • गर्भाशय की सूजन: अशोक की छाल 120 ग्राम, वरजटा, काली सारिवा, लाल चंदन, दारूहल्दी, मंजीठ प्रत्येक की 100-100 ग्राम मात्रा, छोटी इलायची के दाने और चन्द्रपुटी प्रवाल भस्म 50-50 ग्राम, सहस्त्रपुटी अभ्रक भस्म 40 ग्राम, वंग भस्म और लौह भस्म 30-30 ग्राम तथा मकरध्वज गंधक जारित 10 ग्राम की मात्रा में लेकर सभी औषधियों को कूटछानकर चूर्ण तैयार कर लेते हैं। फिर इसमें क्रमश: खिरेंटी, सेमल की छाल तथा गूलर की छाल के काढ़े में 3-3 दिन खरल करके 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लेते हैं। इसे एक या दो गोली की मात्रा में मिश्रीयुक्त गाय के दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। इसे लगभग एक महीने तक सेवन कराने से स्त्रियों के अनेक रोगों में लाभ मिलता है। इससे गर्भाशय की सूजन, जलन, रक्तप्रदर, माहवारी के विभिन्न विकार या प्रसव के बाद होने वाली दुर्बलता नष्ट हो जाती है। जरायु (गर्भाशय) के किसी भी दोष में अशोक की छाल का चूर्ण 10 से 20 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह क्षीरपाक विधि (दूध में गर्म कर) सेवन करने से अवश्य ही लाभ मिलता है। इससे गर्भाशय के साथ-साथ अंडाशय भी शुद्ध और शक्तिशाली हो जाता है।
  • मासिक धर्म का कष्ट के साथ आना: अशोक की छाल 10 से 20 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन क्षीरपाक विधि (दूध में गर्म करके) प्रतिदिन पिलाने से कष्टरज (माहवारी का कष्ट के साथ आना), रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर आदि रोग ठीक हो जाते हैं। यह गर्भाशय और अंडाशय में उत्तेजना पैदा करती है और उन्हें पूर्ण रूप से सक्षम बनाती है।
  • खूनी अतिसार: 100 से 200 ग्राम अशोक की छाल के चूर्ण को दूध में पकाकर प्रतिदिन सुबह सेवन करने से रक्तातिसार की बीमारी समाप्त हो जाती है।
  • मासिक-धर्म सम्बंधी परेशानियां: अशोक की छाल 10 ग्राम को 250 ग्राम दूध में पकाकर सेवन करने से माहवारी सम्बंधी परेशानियां दूर हो जाती हैं।
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