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योगी वैरागी संन्यासी बनने के लक्षण (Sanyasi)


ज्योतिष के अंतर्गत जातक की जन्म कुंडली में कई प्रकार के योग होते हैं, जिनका उस पर प्रभाव पड़ता है। ऐसा ही एक योग है प्रवज्या यानी संन्यास योग। कुंडली में दशम भाव से प्रवज्या योग का विचार किया जाता है। इस योग में जन्मे मनुष्य सांसारिक मोह-माया से विमुख होकर वैरागी हो जाते हैं और संन्यास धारण कर लेते हैं। ऐसे लोगों को संसार निरर्थक प्रतीत होने लगता है और गृहस्थ जीवन में उन्हें मन नहीं लगता है। इस योग का बहुत जातक ग्रंथों में वर्णन किया गया है। ऐसा ही एक योग है प्रावज्य योग, जो अगर कुंडली में हो, तो जातकों में वैरागी बनने के लक्षण प्रबल हो जाते हैं।
  • यदि जन्म के समय कुंडली में चार, पांच, छह या सात ग्रह एक साथ एक ही स्थान पर बैठ जाएं, तो ऐसे जातक संन्यासी होते हैं।  प्रवज्या योग में एक बली ग्रह का होना अति आवश्यक है।
  • यदि लग्नाधिपति पर शनि की दृष्टि हो और अन्य ग्रहों की दृष्टि न हो, तो संन्यास योग होता है क्योंकि अध्यात्म ज्योतिष में शनि ग्रह को नैराश्य सूचक तथा विरक्ति प्रदान करने वाला ग्रह कहा गया है। चंद्रमा मन का कारक है। इसलिए इन दोनों के सामंजस्य को प्रवज्या योग का कारण बताया गया है। 
  • यदि बृहस्पति एवं शुक्र नवमेश के साथ पंचम या नवम स्थान में स्थित हों, तो जातक सिद्ध भक्त संन्यासी होता है। 
  • यदि शनि शुभ ग्रह नवांश में हो और विरक्ति प्रदान करने वाले ग्रहों पर उसकी दृष्टि हो तथा सूर्य परमोच्च अंश पर हो, तो जातक बाल्य काल से ही महान भगवद्भक्त हो जाता है। 
  • यदि कुंडली में चार-पांच ग्रहों में से एक दशमेश भी हो, केंद्र या त्रिकोण में एक साथ स्थित होने पर बली ग्रह के अनुसार प्रवज्या होती है। प्रवज्या योग में एक बली ग्रह का होना अति आवश्यक है। यदि मंगल ग्रह बली होकर प्रवज्या योग निर्मित करता है, तो जातक लाल वस्त्र, भगवा वस्त्री धारण करने वाला जितेंद्रिय संस्यासी बनता है। 
  • यदि कुंडली में चंद्रमा बली होकर प्रवज्या योग बनाता है, तब ऐसा जातक गुरु, संन्यासी, नग्न कपालधारी संन्यासी या शैवमतावलंबी होता है।
  • यदि सूर्य के प्रवज्या कारक होने से जातक वान प्रस्थ, अग्नि सेवी पर्वत एवं नदी के किनारे निवास करने वाला, सूर्य, गणेश व शक्ति का उपासक और ब्रह्मचारी संन्यासी होता है।
  • यदि बुध बली होकर प्रवज्या योग बनाए, तो जातक कपटी, कपालिक तांत्रिक व संन्यासी होता है। 
  • यदि बृहस्पति के बली होने से प्रवज्या योग बनता है, तो जातक भिक्षुक, तपस्वी, नीतिशास्त्र, वेदों-उपनिषदों का ज्ञाता, यज्ञादि कर्म करने वाला संन्यासी होता है। 
  • शुक्र के प्रवज्या योग कारक होने से जातक देश-विदेश में भ्रमण करने वाला वैष्णव धर्म परायण, कथा वाचक, व्रत नियम धारण करने वाला संन्यासी होता है।
  • शनि के प्रवज्या कारक होने से जातक फकीर, दिगंबर आदि मत को मानने वाले, कठोर तपस्वी, मनस्वी व संन्यासी होते हैं।

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