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Khar Maas (खरमास)


सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करते ही खरमास का आरंभ हो जाता है। जिसकी समाप्ति मकर संक्रांति के साथ होती है क्योंकि इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस कालावधि में गुरु देव बृहस्पति अस्त रहते हैं, जिसकी वजह से खर मास में हिंदू धर्म में कोई भी मांगलिक कार्य न करने की परंपरा अनादि काल से चली आ रही है। वैसे भी सभी नौ ग्रहों में देवगुरु बृहस्पति को सर्वाधिक शुभ माना गया है। समस्त शुभ कार्यों के संपादन में इनकी शुभता तथा अनुकूलता विशेष सहायक मानी जाती है। मनुष्यों के प्रत्येक शुभ कार्य, शादी-विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, वेदारंभ शिक्षा संतान, नामकरण आदि में गुरु ग्रह का महत्वपूर्ण स्थान है। इसीलिए इनके अस्त होने पर मांगलिक कार्य न करने का उल्लेख शास्त्रों में किया गया है। सर्वविदित है कि जब कोई ग्रह सूर्य के समीप आता है या उससे युति करता है, तो सूर्य के प्रकाश से उसकी किरण आभा क्षीण हो जाती है और वह अपना प्रभाव खो देते हैं। या फिर अस्त हो जाते हैं। जैसा कि गर्ग संहिता में भी वर्णित है।

अस्तमे चर: गुरौ शुक्रे बाले वृद्ध मलिम्लुचे। उध्यापन शुभारंभ व्रतानां नेव कारयेत।।

शास्त्रों में यह भी वर्णित है कि गुरु के अस्त होने के कारण उस समय जातक पर उस ग्रह का पूर्ण शुभ प्रभाव नहीं पड़ता है और गुरु तो पति का कारक ग्रह माना जाता है। इसी परिप्रेक्ष्य में यदि शुक्र अस्त हो, तो दोनों का अशुभ नकारात्मक प्रभाव वैवाहिक संबंधों पर पड़ता है क्योंकि शुक्र स्त्री का कारक ग्रह माना गया है।

परंतु नित्य प्रति पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन, कथा श्रवण इन सब कार्यों का कोई निषेध नहीं है। खर मास भी कार्तिक तथा मार्गशीर्ष माह की तरह पूजा-पाठ, आध्यात्मिक ज्ञान, वेदाध्ययन, रामायण, गीता के पाठ श्रवण तथा मनन, परोपकार तथा सदाचरण के लिए समर्पित है। गरुड़ पुराण में वर्णित है ऐसा करने से परमानंद की प्राप्ति संभव है।

यथा-यथा हि पुरुष: शास्त्रं समधिगच्छति तथा तथास्य मेधा स्याद्विज्ञानं चास्य रोचते। 
यथा-यथा हि पुरुष: कल्याणे कुरुते मतिम। तथा-तथा हि सर्वत्र श्लिष्यते लोकसुप्रिय:।।

यानी जैसे-जैसे मनुष्य शास्त्रों का स्वध्याय करता जाता है, वैसे-वैसे उसकी ज्ञानशक्ति और धारणशक्ति बढ़ती जाती है तथा उसका वैदुष्य चमत्कृत होता जाता है। जैसे-जैसे व्यक्ति परोपकार और सदाचार में मन लगाता है, वैसे-वैसे उसकी लोकप्रियता बढ़ती है और वह सौभाग्य का भाजन बनता है। इस प्रकार सदाचार आदि को धारण करने और क्रियान्वयन करने से आध्यात्मिक ऊर्जा का विकास होता है। इस मास में अपने इष्ट देव के मंत्रों का जप अथवा अपनी राशि मंत्र का जप करना भी लाभप्रद होता है :

मेष :         ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मी नारायणाय नम:।
वृष :         ॐ गोपालाय उत्तरध्वजाय नम:।
मिथुन :    ॐ क्लीं कृष्णाय नम:।
कर्क :        ॐ हिरण्य गर्भाय अव्यक्तरुपिणे नम:।
सिंह :        ॐ ह्रीं श्रीं सौ:।
कन्या :     ॐ नमो प्रीं पीताम्बराय नम:।
तुला :       ॐ तत्व निरंजनाय तारक रामाय नम:
वृश्चिक :   ॐ नारायणाय सुर सिंहाय नम:।
धनु :        ॐ ह्रीं क्लीं सौ:।
मकर :     ॐ श्री वत्सलाय नम:।
कुंभ :       ॐ श्री उपेन्द्राय अच्युताय नम:
मीन :      ॐ क्लीं उद्धृताय उद्धारिणे नम:।

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