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Geeta Se भगवान श्री कृष्ण


भगवान श्रीकृष्ण की कही हुई बातें आज भी प्रासंगिक इसलिए हैं क्योंकि वह मनुष्य को सही आचरण करना सीखाती हैं। उन्होंने हर बुराई पर से बचने का मार्ग बताया है। इसीलिए जब अर्जुन ने उनसे पूछा,

अथ केन प्रयुक्तोअयं पापं चरति पुरुष:। अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजित:।

अर्थात् हे श्रीकृष्ण, तो यह मनुष्य किससे प्रेरित होकर न चाहते हुए भी बलपूर्वक लगा दिए हुए की भांति पापमय आचरण करता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने बताया,

काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भव:। महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्।

अर्थात् रजोगुण से उत्पन्न हुआ यह काम ही क्रोध है। यह बहुत खाने वाला है तथा महापापी है। इस विषय में तू काम को ही अपना शत्रु समझ।

कहने का तात्पर्य है कि इंद्रियों का निग्रह न होने की वजह से मन में कामना पैदा होती है। कामना पूर्ण न होने से क्रोध उत्पन्न होता है। चूंकि कामनाओं का कोई अंत नहीं होता। अत: वह मनुष्य की बुद्धि का अपहरण करके उसे बलपूर्वक पापकर्म में प्रवृत्त करती रहती हैं। इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण ये कहा है,

जहि शत्रु महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।

अर्थात् हे महाबाहो अर्जुन, तू कामरूपी दुर्जय शत्रु को मार दे।

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