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ब्रह्म-मुहूर्त का महत्त्व (Brahma Muhurta)


धर्मशास्त्र में बताए अनुसार ब्राह्ममुहूर्त में उठें.ब्रह्ममुहूर्त रात्रि का चौथा प्रहर होता है। (दिन-रात का तीसवां भाग मुहूर्त कहलाता है अर्थात २ घटी या ४८ मिनिट का कालखंड एक मुहूर्त कहलाता है) ‘सूर्योदय से पूर्व के एक प्रहर में दो मुहूर्त होते हैं। उनमें से पहले मुहूर्त को ‘ब्राह्म-मुहूर्त’ कहते हैं। उस समय मनुष्य की बुद्धि व ग्रंथरचना की शक्ति उत्तम रहती है. इसलिए इस मुहूर्त को ‘ब्रह्म’ की संज्ञा दी गई है। 

मुहूर्ते बुध्येत् धर्माथर चानु चिंतयेत्। कायक्लेशांश्च तन्मूलान्वेदत˜वार्थमेव च" 

अर्थात् ब्रह्ममुहूर्त जो प्रात: चार से पांच बजे के बीच का समय होता है में उठकर धर्म, अर्थ और परमात्मा का ध्यान करे.
ब्रह्म-मुहूर्त का महत्त्व
  • इस काल में दैवी प्रकृति के निराभिमानी जीवों का संचार रहता है। यह काल सत्व गुण प्रधान रहता है। सत्व गुण ज्ञान की अभि वृद्धि करता है। इस काल में बुद्धि निर्मल व प्रकाश मान रहती है।
  • धर्म व अर्थ के विषय में किए जाने वाले कार्य, वेद में बताए गए तत्व (वेदतत्वार्थ) के चिंतन तथा आत्मिंचतन हेतु ब्रह्म मुहूर्त उत्कृष्ट काल है।
  • इस काल में सत्व शुद्धि, ज्ञान ग्राह्यता, दान, इंद्रिय संयम, तप, सत्य, शांति, निर्लोभता, निंद्यकर्म करने की लज्जा, स्थिरता, तेज व शुचिता (शुद्धता), ये गुण अंगीकार करना सुलभ होता है।
  • इस काल में मच्छर, खटमल व पिस्सू क्षीण होते हैं।
  • इस काल में अनिष्ट शक्तियों की प्रबलता क्षीण होती है।
  • जल्दी उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में अद्भूत शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु अमृत के समान माना गया है। इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है। 

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