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गाय का महत्व (Importance of Cow)


हिंदू धर्म में गाय का महत्व देवों के समान बताया गया है। वेद हो या पुराण, सभी में गौ को पूजनीय बताने के साथ ही संसार की संरक्षिका भी कहा गया है। ऋग्वेद के ‘ऋषि अग्नि’ के अंत:करण में परम पिता परमेश्वर के शब्द गौमाता के प्रति इस रूप में प्रकट हुए हैं, 

‘माता रुद्राणाम् दुहिता वसुनाम् स्वसादित्यानाममृतस्य नाभि:। 
प्रनु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिम् वधिष्ट’। 

यानी प्रत्येक चेतना वाले विचारशील मनुष्य को मैंने यही समझाकर कहा है कि निरपराध गौ को कभी मत मारो क्योंकि वह रुद्र देवों की माता है, वसु देवों की कन्या है और आदित्य देवों की बहन तथा धृत रूप अमरत्व का केंद्र है।

33 प्रकार के देवताओं का वास गौमाता में है। प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त, धनंजय ये 10 प्राण एवं ग्यारहवां जीवात्मा ये ही एकादश रुद्र हैं। ये जब शरीर से निकल जाते हैं, तो प्राणी रुदन करते हैं। गौ इन रुद्रों की माता कही जाती है क्योंकि हमारे शरीर के 10 प्राण एवं जीवात्मा की पुष्टि गौ दुग्ध से होती है। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, सूर्य, चंद्र, तारे ये आठ वसु हैं और समस्त संसार इनमें ही बसा हुआ है। गौ माता इनकी दुहिता है। सूर्य चिकित्सा में वैद्य या हकीम अलग-अलग रंगों की बोतलों में पानी भरकर धूप में रख देते हैं और उनसे मरीजों का इलाज करते हैं। हर रंग की बोतल में सूर्य के प्रकाश के प्रभाव के बाद अलग प्रभाव उत्पन्न हो जाता है। ठीक इसी प्रकार कृष्णा यानी श्यामा गौ का दूध वात रोग दूर करने वाला और अपेक्षाकृत अधिक गुणकारी होता है। पीले रंग की गौ का दूध पित्त और वात रोग दूर करने वाला माना गया है। भिन्न-भिन्न रंग की गाय के दूध के गुण भिन्न-भिन्न होते हैं। भगवान ने विविध रंगों की गौएं इसीलिए बनाई हैं कि वे अपने रंगों के कारण वसुओं में से नाना प्रकार के प्रभावों को दुह लेती है। गौ को आदित्य की बहन भी माना गया हैं। इसलिए 12 मासों की तरह 12 आदित्य भी हैं। गौ को 11 रुद्र, 8 वसु, 12 आदित्य, यज्ञरूप प्रजापति, मेघरूपी इंद्र को 33 प्रकार के मूल में जो देव हैं, उनके बराबर माना गया है। इसलिए गौ विश्व की माता भी है। गाय के गोबर में लक्ष्मी का वास भी बताया गया है। वहीं गौ मूत्र से लीवर संबंधी और मधुमेह की बीमारी दूर होती है। शास्त्रों में गाय की कई विशेषताएं बताई गई हैं। गाय के रंभाने मात्र से चतुर्दिक आध्यात्मिक दिव्यता का प्रसार होता है। गाय को पर्यावरण की संरक्षिका भी कहा गया है। स्वदेशी गाय की गर्दन के पास पृष्ठ भाग में शिवलिंग की भांति एक उभार होता है। उसमें सूर्य केतु नाम की एक नाड़ी होती है, जो सूर्य की किरणों से ऊर्जा को आकृष्ट करती है। इसके परिणास्वरूप गाय के दूध में शक्ति प्रदाता स्वर्ण का निर्माण हो जाता है, जो विपुल धनराशि देकर भी सुलभ नहीं हो सकता है। उस दूध का सेवन करने से, कमरे में गौ धृत का दीप जलाने से, चिकित्सीय दवा के साथ बीमार आदमी के ऊपर से आटे की लोई वार कर गौ को नियमित रूप से खिलाने से कई परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है। स्वदेशी गाय के मूत्र का घर में छिड़काव करने से गौ धृत का दीप जलाने आदि से घर से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और वास्तु दोष का निवारण हो जाता है। गाय केवल पूजनीय ही नहीं है, बल्कि घर को दोषमुक्त करने में भी इसका महत्व है। गौमूत्र हो या दूध सभी से हर प्राणी को लाभ होता है

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