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देवोत्थानी एकादशी तथा कार्तिक पूर्णिमा अक्षय फलदायी

सभी युगों में कार्तिक मास को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। इस मास के बारे में स्कंद पुराण में कहा गया है,
‘मासानां कार्तिका श्रेष्ठो देवानाम् मधुसूदन:। 
तीर्थे नारायणारव्यं हि त्रित्यं दुर्लभं कलौ॥ 
न कार्तिक समोमासो न कृतेन समंयुगम्। 
न वेद सदृशं शास्त्रं न तीर्थ गंगया समम्॥’

यानी कार्तिक के समान कोई मास नहीं है। सतयुग के समान कोई युग नहीं है। वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है तथा गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है।


इसी प्रकार के योग मे जो लोग गंगा स्नान करते हैं उनको बहुत ही पुण्य मिलता हैं। जैसा कि आप जानते हैं  यह कार्तिक मास हैं, एकादशी के दिन गंगा मे स्नान कर दान पुण्य कार्य करना अपने आप मे आदित्य हैं।

इस मास की महत्ता स्वयं बह्मा जी ने नारद जी को बताई है, ‘यह मास मनुष्यों के लिए अत्यंत दिव्य, पुण्यप्रदाता, पापनाशक तथा मुक्ति, मोक्ष और आध्यात्मिक ज्ञान देने वाला है क्योंकि इस मास में सभी देव, मनुष्यों के अत्यंत सन्निकट होते हैं, जो इसमें किए गए स्नान, दान, जप, हवन आदि को विधिवत ग्रहण करके पुण्य फल प्रदान करते हैं। इस मास का अत्यंत महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह श्रीहरि विष्णु का प्रिय मास है। भगवान श्रीकृष्ण ने इस मास की व्याख्या करते हुए कहा है, ‘पौधों में तुलसी मुझे प्रिय है, मासों में कार्तिक मुझे प्रिय है, दिवसों में एकादशी और तीर्थों में द्वारका मेरे हृदय के निकट है।’ इसीलिए इस मास में श्री हरि के साथ तुलसी और शालीग्राम के पूजन से भी पुण्य मिलता है तथा पुरुषार्थ चातुष्ट्य की प्राप्ति होती है। इस मास में गंगा स्नान करने से पापों का क्षय, यमुना स्नान से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। इस मास में सूर्य के दक्षिणायन होने से देवकाल न होने की वजह से सद्गुणों को क्षरण से बचाने के लिए गंगा स्नान, जप तथा यज्ञ-अनुष्ठान आदि करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है।’

‘हरि जागरणं प्रात: स्नानं तुलसिसेवनम्। उद्यापने दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके।’ अर्थात् रात्रि में भगवान विष्णु के समीप जागरण प्रात:काल स्नान, तुलसी पूजन, उद्यापन और दीपदान ये कार्तिक माह के पांच नियम हैं। इन पांचों नियमों का पालन करने वाले व्यक्ति पूर्ण फल के भागी होते हैं।

इस मास के देवोत्थानी एकादशी तथा कार्तिक पूर्णिमा अक्षय फलदायी हैं। पद्म पुराण में भी वर्णित है कि जो मनुष्य कार्तिक में तिल दान, नदी स्नान, साधू-संतों की सेवा, भूमि शयन, मौन व्रत का पालन, तिल मिश्रित जल से स्नान, अखाद्य पदार्थों का त्याग तथा पलाश पत्र के पत्तल में भोजन करता है, उसके युगों के संचित पाप स्वत: नष्ट हो जाते हैं और वह 14 इंद्रियों की दुर्गति में कभी नहीं पड़ता, उसे समस्त तीर्थों का पुण्य फल प्राप्त होता है। प्रयाग में स्नान करने से, काशी में मृत्यु होने से और वेदों का स्वाध्याय करने से जिस फल की प्राप्ति होती है। वह सब कार्तिक मास में तुलसी पूजन करने से प्राप्त हो जाता है। जो मनुष्य कार्तिक मास में संध्याकाल में श्री हरि के नाम से तिल के तेल दीपदान करते हैं, उनका जीवन सदैव आलोकित प्रकाशित होता है। वह अतुल लक्ष्मी रूप, सौभाग्य तथा अक्षय संपत्ति पाता है। प्रात: काल स्नानादि से निवृत्त होकर श्रीहरि विष्णु का पंचोपचार एवं षोड्शोपचार पूजन करने उनके मंत्रों ॐ अच्युताय नम:, ॐ केशवाय: नम:, ॐ अनंताय: नम: का मानसिक एवं वाचिक जप निरंतर करते रहने से अपार मानसिक शांति, ऊर्जा, तेज और परम ब्रह्म की प्राप्ति होती है। धनतेरस, गोवर्धन पूजा, भइया दूज, तुलसी विवाह और दूसरे महत्वपूर्ण त्योहार इसी माह में आते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि जो लोग इस पूरे माह दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं और भगवद्गीता का नियमित पाठ करते हैं, उन्हें देवकृपा अवश्य मिलती है।

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