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श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत कैसे करे (Janmashtami Fast)

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी मे वृषभ राशि, रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस बार भी सोमवार 22 अगस्त को रोहिणी नक्षत्र और चंद्रमा भी वृषभ राशि में रहेगा। 

प्रातः काल जल में तिल मिला कर स्नान करे, वस्त्र धारण करे। 

ऐसे संकल्प करे। 

ॐ विष्णु विष्णु विष्णु: अद्य शर्वरीनाम संवत्सरे सूर्ये दक्षिणायने वर्षतरै भाद्रपद मासे कृष्ण पक्षे श्री कृष्ण जन्माष्टम्यांतिथौ भौमवासरे (अपना नाम बोलें) नामाहं मम चतुर्वर्ग सिद्धि द्वारा श्री कृष्ण देव प्रीतये जन्माष्टमी व्रताङ्गत्वेन श्री कृष्ण देवस्ययथा मिलितोपचारै: पूजनं करिष्ये। 

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत अनिवार्य माना गया है। आज दिन उपवास रखें तथा अन्न का सेवन न करें। वैसे तो जन्माष्टमी के व्रत में पूरे दिन उपवास रखने का नियम है, परंतु इसमें असमर्थ फलाहार कर सकते हैं। मध्य रात्रि तक पूर्ण उपवास रखते हैं। सभी वर्ग मे भगवान श्रीकृष्ण का जन्म दिन उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। जब तक जन्म उत्सव सम्पन्न ना हो तब तक भोजन न करें। कृष्णाष्टमी के दिन भोजन करने से प्रलय होने तक उस आत्मा को घोर नरक में रहना पडता है। 

भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या शालिग्राम को दूध, दही, शहद, यमुनाजल आदि से स्नान करना चाहिये और षोडशोपचार विधि से पूजन करे। जन्मोत्सव के पश्चात घी की बत्ती, कपूर आदि से आरती करें, मेवा, मक्खन आदि का भोग लगाकर, अंत में स्वयं भी ग्रहण करें। व्रत के दूसरे दिन व्रत का पारण कर मंदिरों में ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, रजत, स्वर्ण व मुद्रा दान करना चाहिए। 

कृष्णाष्टमी की रात में भगवान के नाम का संकीर्तन या उनके मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप करें। श्री कृष्ण का स्मरण करते हुए रात भर जगने अक्षय पुण्य मिलता है। सब क्लेश और दुख-दरिद्रता दूर हो जाते हैं। वे निश्चित रूप से जन्माष्टमी व्रत को इस लोक में करते हैं। उनके पास सदैव स्थिर लक्ष्मी होती है। इस व्रत के करने के प्रभाव से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है और समस्त कार्य सिद्ध होते हैं।

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